जय गोविन्दम्, जय गोपालम्
जय अकालम्, जय अकालम्.
गली-गली में शोर है
अदिगवा बुकरचोर है.
बुकर खरी का बोरा है
निजविभोर रस-होरा है.
चिरकुटई चापाकल महानद कहाया
संवेद-दलिद्दर करिखा मगध सजाया.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आज़ादी के बाद की प्रकाशित चर्चित-दिलचस्प किताबें.. जो सामाजिक दुर्भाग्य से अब विलुप्तप्राय हैं.. उन्हें सहेजने-संजाने, याद करने का एक छोटा प्रयास..
10 comments:
शानदार, जानदार कविता।
सब तरफ़ गाली खा रहा है .. (बेचारा?)
तिलकुट हिलकुट काजवाब नहीं भाई।
लो जी बुकर की देशी बधाई।।
अदिगवा बुकरचोर है???????????why??????
कहाँ हो कवि? ऐसा लगता है मित्रता का कोना तुम गोलाकार ही रखोगे!
नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
Goog Blog!
Sanjay Suman
Pramod ji,
Are dhang kee koi kavita likhiye.kavita khali tukbandee aur logon ko gariyane ka nam naheen hai.
Hemant Kumar
ggod,sawal kavita ka nahi udgaaron ke khanipan ka hai.badhai aur dhanyavaad.
aapka hi
dr.bhoopendra
Post a Comment