Friday, 30 November 2007

किताबी लाल के दस्‍तखत..

ब्‍लॉग बिसमिल्‍ला करने के लिए फ़ि‍लहाल किताबी लाल कुछ ऐसी किताबों का नाम याद भर कर रहे हैं जिन्‍हें पाकर, पढ़कर किसी छुटपने की उम्र में बाग़-ओ-बहार हुए थे.. साथ ही आप सबों से इसकी अलग से माफ़ी चाहते हुए भी, कि हुज़ूर, क्षिमा करो, कि सब नाम, मुए नाविलों के ही हैं.. चलिए, हमें ठेलकर मन शांत कर लीजिएगा.. यूं भी यह ऑथेंटिक पोस्‍ट नहीं है.. कहीं सचमुच दीवार से सिर फोड़ने न लगूं, महज़ उसका सेफगार्ड भर है.. तो साहेब, किताब रसैया लोगन, नीचे चेंप रहा हूं एक छोटी पसंदीदा पुस्‍तकों की लिस्‍ट.. बिना उनकी तिथि व अन्‍य प्रकाशकीय सूचनाओं के.. बिना लेबल..

1. निराला की साहित्‍य साधना: खंड एक (रामविलास शर्मा लिखित निराला की जीवनी).
2. शानी का काला जल.
3. मंज़ूर एहतेशाम का सूखा बरगद, दास्‍तान-ए-लापता.
4. यशपाल का झूठा सच (पहले खुद यशपाल ने अपने विप्‍लव प्रकाशन, लखनऊ से छापा था, उनके मृत्‍योपरांत अधिकार लोकभारती, इलाहाबाद ने ले लिए. अब लोकभारती को राजकमल के अशोक माहेश्‍वरी ने ले लिया है).
5. निराला लिखित दो छोटी उपन्‍यासिकाएं- चतुरी चमार और बिल्‍लेसुर बकिरहा (इनका प्रकाशन निश्चित ही पचास के पहले हुआ, किंतु इन दोनों ही किताबों की भीगी चाबुक की तेज़ मार के मोह में मैं उन्‍हें पीछे की ओर खींच रहा हूं. सॉरी).
6. योगेश गुप्‍त की उनका फ़ैसला.
7. जेर्जी आंद्रेजेवेस्‍की के विख्‍यात पोलिश उपन्‍यास का रघुवीर सहाय का हिंदी अनुवाद- राख और हीरे (साहित्‍य अकादमी ने छापा था, फ़ि‍लहाल अप्राप्‍य है).
8. मुक्तिबोध की एक साहित्यिक की डायरी.
9. इंतज़ार हुसैन की किताब बस्‍ती का हिंदी लिप्‍यांतर.
10. चंद्रभूषण का काव्‍य-संग्रह इतनी रात गए (संवाद प्रकाशन, मेरठ) और आर चेतनक्रांति की शोकनाच (राजकमल, दिल्‍ली ने छापा. दोनों ही किताबों को छपे अभी ज़्यादा समय नहीं हुआ, मगर वह पुरानी होने के पहले ही भुला दी गई हैं.. इसीलिए कि इन तथाकथिक लल्‍लू-बिल्‍लू आलोचकों को कोई लात लगानेवाला नहीं).