Tuesday 15 April, 2008

भीष्म साहनी की "मेरे साक्षात्कार"


किसी भी लेखक की रचनायें ही लेखक का प्रतिनिधित्व करतीं है लेकिन उक्त लेखक से जुड़े संस्मरण, रचना यात्रा, निजी संघर्ष भी लेखक की रचनाओं से कम नहीं होता. रेणु जी की रचनावली या परसाई जी की रचनावली में हम सिर्फ उनकी रचनाओं से ही परिचित नहीं होते बल्कि उस समूचे कालखंड की यात्रा कर डालते हैं.

भीष्म साहनी के विभिन्न अवसरों पर लिये गये 27 साक्षात्कारों का संकलन मेरे साक्षात्कार हमें भीष्म साहनी की रचना यात्रा से परिचित कराता है.

बकौल भीष्म साहनी जी, "गप्प शप्प का अपना रस होता है. इस गप्प शप्प में हम सांस्कृतिक क्षेत्र में चलने वाले कार्य कलाप, लेखक के आपसी रिश्ते, उन्हें परेशान करनेवाले तरह तरह के मसले, उनके जीवन यापन की स्थिति, उनके आपसी झगड़े और मन मुटाव आदि आदि हमारी सांस्कृतिक गतिविधि से पर्दा उठाते है और हम लेखक को हाड़ मांस के पुतले के रूप में देख पाते हैं. लेखक अपनी इन कमजोरियों के रहते अपनी लीक पर चलता हुआ सृजन के क्षेत्र में कहीं सफल और कहीं असफल होता हुआ अपनी इस यात्रा को कैसे निभा पाता है, इसे हम उसके जीवन के परिप्रेक्ष्य में देख पाते हैं"

फैसला: जरूर जरूर जरूर पढ़िये.

किताब का नाम: "भीष्म साहनी : मेरे साक्षात्कार"
प्रकाशक: किताब घर 24 अंसारी रोड नई दिल्ली
वर्ष 1995
मूल्य रु.150.
आईएसबीएन: 81-7016-320-X

15 comments:

अफ़लातून said...

मैथिली जी ने अपना लिया इसलिए इस चिट्ठे के प्रति उम्मीद बनी रहती है ।

azdak said...

अफ़लातून उवाच.. सही उवाच? अच्‍छा है सिपाही लोग पुराना यूनिफार्म निकाल रहे हैं.. जमे रहिये, मैथिली जी..

Manas Path said...

ठीक है जरूर पढ़ी जाएगी.

Udan Tashtari said...

आपने सलाह दी है तो कैसे न मानी जाये..जरुर पढ़ेंगे. :)

चंद्रभूषण said...

मैथिली जी, मेरे ख्याल से इस ब्लॉग का पाठक यहां आने के बाद थोड़ा और ज्यादा सामग्री पाने का हकदार है। कोशिश की जाए कि या तो किताब का कोई छोटा अंश साथ में दिया जाए या नहीं तो कम से कम तीन-चार सौ शब्द उसे एक बार में यहां पढ़ने को जरूर मिल जाएं। बहरहाल, आपके आने से कुछ उम्मीद तो जरूर जगी है।

मैथिली गुप्त said...

@अफलातून जी; अपनाया तो मुझे इस ब्लाग संचालक ने मेरी इस ब्लाग से जुड़ने की प्रार्थाना को स्वीकार करके.
@प्रमोद सिंह जी:साहब अभी तक यूनीफारम में ही हैं.
@अतुल एवं समीर भाई: जरूर पढ़िये,
@चन्द्रभूषण जी: मेरे अनाड़ी होने का खामियाजा है. आगे से ध्यान रखूंगा.

rakhshanda said...

आपने कहा है तो अब तो जरूर पढेंगे.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

पुस्तक समीक्षा पढ कर अच्छा लगा और किताब पढने की उत्सुकता बढ गयी।

scam24in hindi said...

sir
apse ye sune ke bad kal milenge jab tak mai ise padh luga
scam24inhindi

Shishir Shah said...

ji kitab to ke ansh jaise chandrabhushan jee ne kaha vaise padhne ko milte to aur behtar hota...

admin said...

साहनी जी पुस्तक "हानूश" मेरी पसंदीदा कृति है। उनके साक्षात्कार सम्बंधी पुस्तक का परिचय पढ कर अच्छा लगा।

श्रद्धा जैन said...

मेथीली जी क्या कोई ऐसी जगह या संस्था जहाँ से हम ये किताबें भारत के बाहर बुला सकें
या ये किताबें अंतरजला पर उपलब्ध हो तो लिंक दे
धन्यवाद आपका

Geet Chaturvedi said...

जिने गिने-चुने ब्‍लॉग्‍स पर मेरा आना जाना है, उनमें से एक है ये किताबी कोना. पर अक्‍सर ख़ाली हाथ लौट जाना होता है यहां से.
किताबी लाल जी (मुझे पता नहीं, आप कौन हैं और प्रोफ़ाइल में कोई मेल आईडी भी नहीं, वरना अलग से आपको मेल करता), आपसे गुज़ारिश है कि इस बंदप्राय अवस्‍था को समाप्‍त करें और इसे रेगुलर चलाएं/चलवाएं. भले इसके फॉर्मेट में थोड़ा बदलाव कर लें (यानी हिंदी-अंग्रेज़ी दोनों ही हों).

ravindra vyas said...

बढ़िया ब्लॉग है लेकिन नियमित नहीं होने से थोड़ा निराश हुआ। एक तरफ किताबें धड़ल्ले से छप रही हैं, खूब अच्छी भी छप रही हैं, इसलिए टोटा नहीं होना चाहिए। ऐसे ब्लॉग को हर हाल में जिलाए रखा जाना चाहिए।

ravindra vyas said...

वेबदुनिया पर अपने साप्ताहिक कॉलम ब्लॉग चर्चा में मैंने किताबी कोना पर लिखा है। लिंक दे रहा हूं।

http://hindi.webdunia.com/samayik/article/article/0808/21/1080821029_1.htm