Thursday 16 October, 2008

तिलकुट-हिलकुट

जय गोविन्‍दम्, जय गोपालम्
जय अकालम्, जय अकालम्.

गली-गली में शोर है
अदिगवा बुकरचोर है.

बुकर खरी का बोरा है
निजविभोर रस-होरा है.

चिरकुटई चापाकल महानद कहाया
संवेद-दलिद्दर करिखा मगध सजाया.

10 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

शानदार, जानदार कविता।

अभय तिवारी said...

सब तरफ़ गाली खा रहा है .. (बेचारा?)

admin said...

तिलकुट हिलकुट काजवाब नहीं भाई।
लो जी बुकर की देशी बधाई।।

Meenu Khare said...

अदिगवा बुकरचोर है???????????why??????

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

कहाँ हो कवि? ऐसा लगता है मित्रता का कोना तुम गोलाकार ही रखोगे!

Vinay said...

नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!

Amit Kumar Yadav said...

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

Career Salah said...

Goog Blog!
Sanjay Suman

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Pramod ji,
Are dhang kee koi kavita likhiye.kavita khali tukbandee aur logon ko gariyane ka nam naheen hai.
Hemant Kumar

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

ggod,sawal kavita ka nahi udgaaron ke khanipan ka hai.badhai aur dhanyavaad.
aapka hi
dr.bhoopendra