Thursday 16 October, 2008

तिलकुट-हिलकुट

जय गोविन्‍दम्, जय गोपालम्
जय अकालम्, जय अकालम्.

गली-गली में शोर है
अदिगवा बुकरचोर है.

बुकर खरी का बोरा है
निजविभोर रस-होरा है.

चिरकुटई चापाकल महानद कहाया
संवेद-दलिद्दर करिखा मगध सजाया.

10 comments:

  1. सब तरफ़ गाली खा रहा है .. (बेचारा?)

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  2. तिलकुट हिलकुट काजवाब नहीं भाई।
    लो जी बुकर की देशी बधाई।।

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  3. अदिगवा बुकरचोर है???????????why??????

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  4. कहाँ हो कवि? ऐसा लगता है मित्रता का कोना तुम गोलाकार ही रखोगे!

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  5. नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!

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  6. आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

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  7. Pramod ji,
    Are dhang kee koi kavita likhiye.kavita khali tukbandee aur logon ko gariyane ka nam naheen hai.
    Hemant Kumar

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  8. ggod,sawal kavita ka nahi udgaaron ke khanipan ka hai.badhai aur dhanyavaad.
    aapka hi
    dr.bhoopendra

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